सियाचिन पर पकिस्तान की नापाक चाल...........!!!

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सियाचिन पर पकिस्तान की नापाक चाल...........!!!

भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली हर बातचीत में पाकिस्तान सियाचिन का मामला जरूर उठाता है। दरअसल, यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से खासा महत्वपूर्ण हैं। इस क्षेत्र पर भारत का कब्जा है। यही कारण है कि पाकिस्तान हमेशा ही सियाचिन के विसैन्यीकरण की बात करता है। हाल में हुई भारत-पाक विदेश सचिवों की बैठक में एक बार फिर यही मुद्दा उठाया गया और बिना किसी निर्णय के इसे जून में प्रस्तावित रक्षा सचिवों की बैठक तक टाल दिया गया। पूरे कश्मीर राज्य में सियाचिन ग्लेशियर ही एक ऐसा क्षेत्र है जहां भारतीय सेना पूरी तरह से पाकिस्तानी सेना पर हावी है। सियाचिन ग्लेशियर 76 किमी लंबी बर्फ की नदी है जो इंद्रा नामक पहाड़ी चोटी से शुरू होती है। इसकी ऊंचाई 23 हजार फीट है। इसी ग्लेशियर से नुब्रा नदी निकलती है जो नुब्राघाटी की जान है। इस घाटी में हजारों लद्दाखी रहते हैं। यहां की ऊंचाई दस हजार फीट है। ग्लेशियर में कोई आबादी नहीं है। यहां 15 से 22 हजार फीट की ऊंचाई तक भारतीय सेना की चौकियां हैं। कश्मीर में नियंत्रण रेखा मेप प्वाइंट एनजे 9842 पर खत्म हो जाती है। इस बिंदु से आगे यह रेखा उत्तर में सालतोरा रिज लाइन से गुजरती है। यह रिज लाइन सियाचिन ग्लेशियर से लगभग 15 किमी पश्चिम में है और इस ग्लेशियर की पश्चिमी दीवार कहलाती है। हालांकि भारत ने तो इस विभाजन को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया, लेकिन पाकिस्तान कुछ और ही दावा करता रहा। पाकिस्तान के अनुसार, नियंत्रण रेखा उत्तरपूर्व में नुब्राघाटी से भारत-तिब्बत सीमा पर काराकोरम तक होनी चाहिए। पाक की इस व्याख्या के कारण उसके हिस्से में अतिरिक्त दस हजार वर्ग किमी का क्षेत्र आ जाएगा। यह किसी भी आधार पर सही नहीं है।
इस क्षेत्र के प्रति भारत की उपेक्षा का लाभ उठा कर पाकिस्तान ने बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्वतारोहियों को काराकोरम और सियाचिन में भेजना शुरू कर दिया। इस क्षेत्र में संसार की कुछ सबसे ऊंची चोटियां स्थित हैं। जिनमें के-2, ब्रोड, घोगोलिसा, मशेरब्रम, गशेरब्रम, बालटोरो, शेरपी और सासेर मुख्य हैं। वर्ष 1984 में जब भारतीय सेना के पर्वतारोही दल ने पाकिस्तान की हरकतों की सूचना भारत सरकार को दी तो सरकार ने सेना को तुरंत बिलाफोडला और सियाला दररें पर कब्जा करने का हुक्म दिया। पाक अधिकृत कश्मीर से सियाचिन आना केवल इन्हीं दो दररें से संभव है। बाद में सियाचिन के अलावा भारतीय सेना ने दस और ग्लेशियरों को अधिकार में लेकर संपूर्ण 76 किमी क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया। इसके बाद पाकिस्तानी फौजी दस्ते इस क्षेत्र में आए, परंतु सोलतोरो रिज भारत के कब्जे में होने के कारण वे सियाचिन में नहीं आ पाए। इस प्रकार पाकिस्तानी सेना सियाचिन में तो है नहीं। सलतोरो रिज सियाचिन ग्लेशियर से 15 किमी पश्चिम में है। यह भारतीय फौज के कब्जे में है। पाकिस्तान फौज सलतोरो रिज से भी पश्चिम में ग्योंग ग्लेशियर की नीची पहाडि़यों पर है और सलतोरो रिज से नीचे होने के कारण उसका सियाचिन ग्लेशियर पर किसी तरह का भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष न तो नियंत्रण है और न ही संपर्क। यही नहीं पाक सेना का बेस निचले ग्योंग ग्लेशियर में होने के कारण यह भारतीय फौज के निशाने पर है तथा उसकी सभी गतिविधियों पर भारत की नजर रहती है। दरअसल, पाकिस्तान की नजर सलतोरो रिज पर है ताकि उसकी सेना वास्तविक सियाचिन ग्लेशियर पर निगरानी रख सके। इससे उसे सियाचिन ग्लेशियर में हो रही भारतीय सेना की गतिविधियों पर नजर रखने का मौका मिल जाएगा तथा वह बिलाफोंडला और सियाला दररें का लाभ उठा विदेशी पर्वतारोहियों को इस क्षेत्र में भेज कर रोज करोड़ों रुपये का व्यापार कर सकेगा। सैनिक प्रयासों के बावजूद और हजारों जानें गंवा कर भी पाकिस्तान अपने इस मकसद में कामयाब नहीं हो पाया है। सियाचिन का सामरिक महत्व इस कारण और भी बढ़ जाता है कि यह क्षेत्र शाक्सगेम घाटी से सटा हुआ है, जहां पाकिस्तान ने भारत के प्रति पारंपरिक विरोध नीति के कारण 1963 में 5160 किमी भूमि चीन को दी थी, जबकि चीन का इस क्षेत्र से कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं था। तिब्बत के सिंगक्यांग प्रांत से पाकिस्तान को जोड़ने वाले काराकोरम हाइवे का निर्माण पाकिस्तान और चीन के बीच सैनिक तालमेल बढ़ाने के लिए किया गया था। यह हाइवे सियाचिन ग्लेशियर के नजदीक है। नुब्रा घाटी यारकंद से लेह तक सिल्क व्यापार का महत्वपूर्ण मार्ग रही है। नुब्रा घाटी का सामरिक महत्व चीन अच्छी तरह समझता है। नुब्रा तथा शियोक घाटियां पाक अनाधिकृत क्षेत्र समझता है। ये घाटियां पाक अनाधिकृत क्षेत्र बाल्टिस्तान और गिलगित के लिए सीधे रास्ते हैं। इन घाटियों से पाकिस्तान की चोरबाटला, बटालिक तथा कारगिल में लगी सेना को घेरने तथा उनकी प्रशासनिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करने की भी सुविधा मिलती है। डोगरा जनरल जोरावर सिंह ने सकार्दू को जीतने के लिए इन्हीं घाटियों का प्रयोग किया था। अत: सियाचिन से भारतीय सेना के हटने से इस क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन का गठबंधन मजबूत हो जाएगा जो हमारी रक्षा व्यवस्था पर गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकता है। सियाचिन मुद्दे पर पहली बार 1986 में भारत-पाक वार्ता होने के बाद दोनों देशों के बीच अब तक वार्ताओं के 11 विफल दौर हो चुके हैं। कारण पाकिस्तान का वह छिपा हुआ एजेंडा है जिसके तहत वह इस क्षेत्र में भारत को उसकी सशक्त मौजूदगी से बेदखल करना चाहता है।

लेखक : ओपी कौशिक (लेखक थल सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल हैं और सियाचिन ग्लेशियर के जनरल कमांडिंग ऑफिसर रह चुके हैं)

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