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देशभक्तों और ग़द्दारों की पहचान कीजिए
जब बाबा रामदेव के अच्छे दिन थे, उस समय हिंदुस्तानी मीडिया के कर्णधार उनसे मिलने के लिए लाइन लगाए रहते थे. आज जब बाबा रामदेव परेशानी में हैं तो मीडिया के लोग उन्हें फोन नहीं करते. पहले उन्हें बुलाने या उनके साथ अपना चेहरा दिखाने के लिए एक होड़ मची रहती थी. आज बाबा रामदेव के साथ चेहरा दिखाने से वही सारे लोग दूर भाग रहे हैं. यह हमारे मीडिया का दोहरा चरित्र है. शायद इसलिए, क्योंकि मीडिया के लोग अधिकांश वही कहना और दिखाना चाहते हैं, जो सरकारें चाहती हैं, चाहे वे सरकारें राज्य की हों या केंद्र की. मीडिया को अपने उन आकाओं या अपने उन अनदेखे नियंताओं से यह सवाल पूछना चाहिए कि जब तक कोई आपका विरोध न करे, तब तक आप उसका गुण गाते हैं, उसकी हर तरह से सहायता करते हैं. जैसा बाबा रामदेव के प्रसंग में हुआ. कौन सा केंद्रीय मंत्री है, जो पतंजलि योगपीठ नहीं गया, जिसने उनकी योजनाओं में मदद नहीं की. अनजाने में नहीं, जानबूझ कर. यहां तक स्वयं सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी बाबा रामदेव से मिलते देखे गए.
बाबा बालकृष्ण उन लाखों लोगों में हैं, जिनका परिवार कभी नेपाल में रहा और सारी शिक्षा-दीक्षा हिंदुस्तान में हुई. उन्हें भारत में एक पासपोर्ट जारी किया गया, जिस पर वह 53 देशों की यात्रा कर चुके हैं. वे यात्राएं उन्होंने भारत के नागरिक के नाते की हैं. उनका सारा जीवन हिंदुस्तान में बीत रहा है, लेकिन अब उनके ऊपर भिन्न-भिन्न प्रकार के आरोप लग रहे हैं और उन्हें नेपाल और हिंदुस्तान का सबसे बड़ा अपराधी बनाने की कोशिश हो रही है. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने शोर मचाया कि नेपाल में बाबा बालकृष्ण आपराधिक गतिविधियों में संलग्न रहे हैं, इसलिए वहां से भागकर यहां आए हैं. हमारे पास नेपाल के गृह मंत्रालय की एक चिट्ठी है, जिसमें कहा गया है कि बाबा बालकृष्ण का नेपाल में किसी तरह का आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और न उन्हें नेपाल सरकार ग़लत नज़र से देखती है.
लेकिन जब बाबा रामदेव ने एक सवाल छेड़ दिया और सवाल भी काले धन का, तो अचानक कांग्रेस सतर्क होने लगी. बाबा रामदेव ने इस सवाल को थोड़ी तेजी से छेड़ा तो भारतीय जनता पार्टी के चेहरे पर मुस्कान फैल गई, लेकिन कांग्रेस थोड़ी क्रोधित होने लगी. आज हालत यह है कि कांग्रेस नियंत्रित सरकार के सारे अंग बाबा रामदेव के काम में दोष तलाशने में जुट गए हैं. सीबीआई स्वतंत्र ताक़त है, लेकिन वह कितनी स्वतंत्र है, यह इस देश के लोग जानते हैं. जो लोग सीधे सरकार के नियंत्रण में हैं, चाहे वह इनकम टैक्स हो, रेवेन्यू इंटेलिजेंस हो, सेल्स टैक्स हो, जितने विभाग हैं, वे सब आज बाबा रामदेव की छत्रछाया में चल रहे स्वयंसेवी संगठनों की जांच में लगे हैं और जांच भी जांच की तरह नहीं हो रही है. जांच भी इस तरह हो रही है कि अगर कहीं कोई गड़बड़ नहीं है तो गड़बड़ तलाशें. यहां पर अलग-अलग तरह के पैमाने अपनाए जा रहे हैं. ट्रस्ट का सिद्धांत हिंदुस्तान की बाक़ी जगहों पर एक तरह से लागू होता है और बाबा रामदेव के यहां दूसरे तरीक़े से लागू किया जाता है.
पहले केंद्र सरकार के मंत्री बाबा रामदेव का गुणगान करते थे कि उन्होंने सारी दुनिया में योगा को योग के नाम से पुनर्स्थापित किया. बाबा रामदेव से पहले विदेशों में हमारे बहुत सारे स्वामी गए और उन्होंने वहां योगा के नाम पर विदेशियों को कुछ आसन सिखाए और बदले में उनसे भरपूर धन-संपत्ति अर्जित की. उनमें से बहुत से विदेशों में ही बस गए. बाबा रामदेव ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने दुनिया में योग को योग के नाम से पुनर्स्थापित किया और उस पुनर्स्थापना में उन्होंने कुछ भी ऐसा नहीं किया, जिसे उन्होंने डिक्लेयर नहीं किया. लेकिन आज बाबा रामदेव सरकार की आंख की भयानक किरकिरी बने हुए हैं और सरकार यह चाहती है कि बाबा रामदेव के ऊपर इतना दबाव बनाया जाए कि वह हाथ जोड़कर सरकार से माफी मांगें और कहें कि मैं अब स़िर्फ योग सिखाऊंगा. लेकिन सवाल यह है कि बाबा रामदेव क्या ऐसा करेंगे? बाबा रामदेव के साथियों के ऊपर भी सरकार ने गाज गिराई. हमारे पास यह ख़बर आई और शायद सबसे पहले हमने ही छापा कि आचार्य बालकृष्ण, जो बाबा रामदेव के बाद द्वितीय स्थान रखते हैं, वह नेपाली नागरिक हैं, लेकिन उनके पास भारतीय पासपोर्ट है. हमने यह ख़बर चौथी दुनिया में इसलिए छापी थी, क्योंकि हम यह बताना चाहते थे कि हिंदुस्तान और नेपाल के बीच सदियों से एक रिश्ता रहा है.
नेपाल के लाखों लोग हिंदुस्तान में पीढ़ियों से काम करते आए हैं और हिंदुस्तानी नेपाल में पीढ़ियों से अभी भी काम कर रहे हैं. दोनों के बीच पासपोर्ट होता है, लेकिन मुझे याद है कि इस पासपोर्ट की नेपाल जाने में कभी ज़रूरत नहीं पड़ी. जब मेरा पासपोर्ट नहीं बना था, तब मैं कई बार बिना पासपोर्ट के नेपाल गया. एक सामान्य चिट्ठी के सहारे, जिसे किसी एमएलए ने लिखा था कि मैं इन्हें जानता हूं, स़िर्फ इस परिचय पत्र के आधार पर कई बार नेपाल गया था. अब भी नेपाल जाने के लिए स़िर्फ परिचय पत्र की ज़रूरत होती है, चाहे वह हिंदुस्तान का वोटर आईडी हो या पासपोर्ट. उसी तरह नेपाल के लोग यहां बिना पासपोर्ट के स़िर्फ अपने घर के पते के आधार पर रह रहे हैं, काम कर रहे हैं. एक पूरी गोरखा डिवीजन हिंदुस्तान में सेना का अभिन्न अंग रही है, जिसने बहादुरी के साथ हिंदुस्तान के स्वाभिमान की कई अवसरों पर रक्षा की है.
बाबा बालकृष्ण उन लाखों लोगों में हैं, जिनका परिवार कभी नेपाल में रहा और सारी शिक्षा-दीक्षा हिंदुस्तान में हुई. उन्हें भारत में एक पासपोर्ट जारी किया गया, जिस पर वह 53 देशों की यात्रा कर चुके हैं. वे यात्राएं उन्होंने भारत के नागरिक के नाते की हैं. उनका सारा जीवन हिंदुस्तान में बीत रहा है, लेकिन अब उनके ऊपर भिन्न-भिन्न प्रकार के आरोप लग रहे हैं और उन्हें नेपाल और हिंदुस्तान का सबसे बड़ा अपराधी बनाने की कोशिश हो रही है. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने शोर मचाया कि नेपाल में बाबा बालकृष्ण आपराधिक गतिविधियों में संलग्न रहे हैं, इसलिए वहां से भागकर यहां आए हैं. हमारे पास नेपाल के गृह मंत्रालय की एक चिट्ठी है, जिसमें कहा गया है कि बाबा बालकृष्ण का नेपाल में किसी तरह का आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और न उन्हें नेपाल सरकार ग़लत नज़र से देखती है.
सवाल यहां बाबा रामदेव या आचार्य बालकृष्ण के व्यक्तित्व और गतिविधियों का नहीं है. सवाल स़िर्फ यह है कि अगर कोई सरकार की नीतियों के ख़िला़फ बोले तो सरकार उसे परेशान करने की कवायद शुरू कर देती है. हमें इस बात पर अब कोई संदेह नहीं कि सरकार लोकतांत्रिक तरीक़े या लोकतांत्रिक शिष्टाचार भूल चुकी है. अगर सरकार में लोकतांत्रिक शिष्टाचार होता तो वह एक लाख 86 हज़ार करोड़ के कोयला घोटाले की जांच उसी तत्परता से करती, जिस तत्परता से उसने बाबा रामदेव के ट्रस्टों की जांच शुरू की है. अगर सरकार में लोकतांत्रिक शिष्टाचार होता तो वह नहीं कहती कि कोल ब्लॉक में जीरो लॉस हुआ है या टू जी में जीरो लॉस हुआ है, जो बाद में ग़लत साबित हुआ. अगर चौथी दुनिया ने टू जी घोटाले की रिपोर्ट इतनी सख्ती से नहीं छापी होती तो यह केस दबा दिया गया था. उसकी वजह और सुप्रीम कोर्ट की टेढ़ी नज़र की वजह से टू जी केस फिर से खुला. अगर मीडिया ने कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर शोर न मचाया होता तो सरकार उसका भोजन कर चुकी थी.
इसी तरह कोयला घोटाले को अगर चौथी दुनिया ने इतनी सख्ती से तीन बार नहीं छापा होता तो यह केस भी हजम हो चुका था और अफसोस की बात यह है कि विपक्षी दल इसमें बराबर के हिस्सेदार दिखाई दे रहे हैं. जब पब्लिक एकाउंट्स कमेटी में महालेखा नियंत्रक परीक्षक ने यह कहा कि हमने कोल आवंटन से हुए घोटाले की राशि को कम करके बताया है, क्योंकि हम यह नहीं चाहते थे कि यह बड़ी राशि दिखाई दे. इसलिए फिर हमने उसका पैमाना दूसरा रखा तो विपक्षियों को इस सवाल को तेजी के साथ उठाना चाहिए था कि यह सरकार एक लाख 86 हज़ार करोड़ की गुनहगार नहीं है, बल्कि छब्बीस लाख करोड़ की गुनहगार है, जिसे हम बार-बार दावे के साथ कहते आ रहे हैं. हमारे इस दावे को महालेखा नियंत्रक परीक्षक ने सीएजी में बयान देकर सही साबित कर दिया. इन मामलों की जांच भारत सरकार ने शुरू नहीं की. भारत सरकार पर दबाव पड़ा, तब इसकी जांच हुई. अगर सीबीआई एक के बाद एक कोयला कंपनियों की जांच कर रही है और सरकार अब कुछ कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर रही है तो इसका सीधा मतलब यह है कि इसमें घोटाला हुआ है, लेकिन सरकार इसके ऊपर ध्यान नहीं दे रही. सरकार ज़्यादा ध्यान बाबा रामदेव के ट्रस्टों के ऊपर दे रही है.
बाबा रामदेव के ट्रस्ट क्या कर रहे हैं. बाबा रामदेव के ट्रस्ट हिंदुस्तान के बाज़ारों में पाए जाने वाले कच्चे माल से आयुर्वेद के सिद्धांत के आधार के ऊपर कुछ उत्पाद बनाते हैं और उन्हें देश में बेचते हैं. उनके उत्पादों को लोगों ने हाथों-हाथ लिया है. वह एक बड़े उपभोक्ता साम्राज्य में तब्दील हो रहा है. जब उन्हीं चीज़ों को बड़े घराने बनाते हैं या मल्टी नेशनल कंपनियां बनाती हैं तो उन्हें यह प्रतिस्पर्द्धा समझ में नहीं आती है. उन्होंने सरकार को रिश्वत देकर इन सारी चीज़ों को डिसके्रडिट करके बंद करने की योजना बनाई है. ऐसे बहुत सारे उत्पाद हैं, जिनकी अगर क़ीमत के रूप में तुलना करें तो बाबा रामदेव के ट्रस्ट द्वारा उत्पादित और विदेशों से लाए गए उत्पादों की क़ीमत में ज़मीन-आसमान का अंतर है. पहले लोग उन उत्पादों को ख़रीदते थे, जो विदेशों से आते थे. अब धीरे-धीरे लोग बाबा रामदेव के ट्रस्ट द्वारा उत्पादित चीजों को तेज़ी से ख़रीद रहे हैं. यही बाबा रामदेव का सबसे बड़ा दोष है. वह मल्टीनेशनल कंपनियों और हिंदुस्तान के बड़े घरानों की आंख की किरकिरी बन गए हैं. और फिर यह कैसे हो सकता है कि इन बड़े घरानों और विदेशी कंपनियों की नाक के नीचे एक बड़ा भारतीय उत्पाद बाज़ार में अपनी जगह बनाने लगे. लिहाज़ा जितनी तरह की जांच एजेंसियां हैं, वे इस समय बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा संचालित उद्योगों के ऊपर मुंह खोले राक्षस की तरह झपट पड़ी हैं.
मजे की चीज़ यह है कि भारत सरकार के पास ऐसे विशेषज्ञ नहीं हैं, जो आचार्य बालकृष्ण द्वारा प्रवर्तित सिद्धांतों को सिद्धांत के आधार पर खारिज कर सकें. आज हालत यह है कि दुनिया के बड़े विश्वविद्यालय, जिनमें हॉवर्ड प्रमुख है, बाबा रामदेव के बताए सिलेबस के आधार पर आयुर्वेद और योग को अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने जा रहे हैं. हॉवर्ड के साथ दुनिया के तीन विश्वविद्यालय इस पद्धति को मान्यता देकर अपने यहां करिकुलम में जोड़ने जा रहे हैं. हॉवर्ड जोड़ सकता है और जब हार्वर्ड जोड़ेगा तो फिर हिंदुस्तान के लोग हॉवर्ड द्वारा आयात करेंगे. लेकिन हिंदुस्तान में रामदेव और बालकृष्ण ने जो सिद्धांत पुन: प्रतिपादित किए हैं, जिन आयुर्वेद के रहस्यों को दुनिया के सामने खोला है, अभी हम उसे इसलिए बर्बाद करने में लगे हैं, क्योंकि हमारा यानी भारत सरकार और भारत के पूंजीपतियों का मुख्य उद्देश्य ऐलोपैथी और विदेशी विज्ञान के उन सिद्धांतों को जिंदा रखना है, जो दरअसल लोगों के स्वास्थ्य के खिला़फ हैं. वे सारी दवाएं, जो विदेशों में प्रतिबंधित हो जाती हैं, हिंदुस्तान में हिंदुस्तानी सरकार के आशीर्वाद से ख़ूब बेची जाती हैं. जब हमारे यहां कोई महामारी होती है या कोई बड़ा हादसा होता है, तब उन दवाओं को प्रतिबंधित करने की मांग होती है, लेकिन तब तक उन कंपनियों की दवाएं हिंदुस्तान के लोगों के शरीर में ज़हर के रूप में प्रवेश कर चुकी होती हैं.
इसीलिए ज़रूरत इस बात की है कि सरकार एक बार फिर से अपने क़दमों के बारे में सोचे और अपनी नज़र उनके ऊपर गड़ाए, जो देश के खिला़फ हैं. अपना वक्त उनके पीछे न बर्बाद करे, जो देशभक्त हैं, जो देश के लिए सिद्धांत की लड़ाई की बात करते हैं, भले ही आपसे मेल न खाए, लेकिन यही लोकतंत्र है. लोकतंत्र में परस्पर विरोधी विचारों का सम्मान होना चाहिए. आपको इंटेलिजेंस ब्यूरो का इस्तेमाल उन लोगों के खिला़फ पीछा करने और फोन सुनने में नहीं करना चाहिए, जो सैद्धांतिक रूप से आपके खिला़फ हैं. आप इन एजेंसियों का इस्तेमाल देश विरोधी गतिविधियां करने वालों के लिए करें, जो ज़्यादा श्रेयस्कर होगा. अन्यथा देश विरोधी गतिविधियां आपके लिए मुसीबतें पैदा करेंगी और आप अपना वक्त उनके पीछे जाया करेंगे, जो देश विरोधी नहीं हैं. आप अपने विरोध को देश का विरोध न मानें, अन्यथा इतिहास आज नहीं तो कल, आपको बहुत बुरे शब्दों में याद करेगा.
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