ढोँगी और पाखंडी thongi and hypocritical
॥अंतर्वेदना॥
आज एक प्रिय भाई ने ढोँगी और पाखंडी जैसे शब्दों पर प्रश्न किया उसी प्रश्न के संदर्भ में-
वास्तव में ये दोनो शब्द समानार्थी हैं।
ये ढोँगी या पाखंडी शब्द समूह वाचक है और इसकी व्यक्तिवाचक अभिव्यक्ति विभिन्न तथाकथित स्वयंसिद्ध गुरुओँ तथा ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देने वाले नामों से किया जा सकता है!
ऐसा नहीं है ये ज्ञान शुन्य होते हैं वास्तव में इन्हे कुछ डाक्यूमेँटल आर थ्योरेटिकल ज्ञान जरूर होता है पर प्रैक्टीकल ज्ञान से इनकी दूरी उतनी ही होती है जितना की चंद्रमा और चंद्रमुखि में हुआ करती है!
और ये लोग अपने इस किताबी ज्ञान से सर्व प्रथम लोगों को स्वयं तक आकर्षित करते हैं और फिर बाद में अपनी लोकप्रियता को रुपये में तब्दील करते हैं!
यदि एक व्यक्ति चाहे वो अल्पज्ञ हो या सर्वज्ञ सिर्फ अपनी आवश्यक्ता पूर्ति भर धन अपने ज्ञान से कमाता भी है तो ये बिलकुल गलत नहीं है बल्कि उचित ही है!
ताकि ज्ञान संवहन अनवरत सुचारु रूप से जारी रहे और समाज में सनातन संस्कृती अपने पूर्ण गौरव मयी स्वरूप में सुसज्जित रहे!
परंतु जब साधक लोभ के वशीभूत हो जाता है तो अपने अल्पज्ञता से ही अधिकाधिक धन कमाने को आतुर हो उठता है और इसके लिए झूठे सपने दिखाना, रातोरात सिद्ध बनाना, या किसी समस्या को दूर करना, लोगों को विग्रह वादी बनाना, आदि आदि प्रकार से असत्य अधर्म और अन्याय पूर्ण कृत्य करना उसका स्वभाव बन जाता है
वो ये नहीं सोचता की कोई व्यक्ति अपनी कितनी आवश्यक कार्यों को रोक कर उसे धन दे रहा है कभी अपसरा पाने के लालच में कभी इतर योनी के लालच में तो कभी कुछ कभी कुछ
और इसका सबसे बड़ा हानी हमारे धर्म को उठाना पड़ता है लोगों के अविश्वास और उपेक्षा के रूप में
यही स्थिती जब साधक अल्प ज्ञान पाकर अपने ही धर्म के पतन को आतुर हो उठता है को ढोँगी/ पाखंडी/और ठग आदि नामों से जाना जाता है।
उस मूर्ख को ये भी पता नहीं होता की वो उस डाल की जड़ को काट रहा होता है जिस पर की वो स्वयं बैठा हुआ है!
कहने को तो हिंदुस्तान की जन संख्या सवा सौ करोड़ की है और यदि तुम्हे ऐसा लगता है की इसके करीब करीब 90 करोड़ या इससे कुछ कम अधिक संख्या है हिंदूओँ की तो आप गलत है वास्तव में हिंदूओँ की कुल संख्या सिर्फ कुछ लाख तक ही सीमित है जो की बहुत ही ज्यादा कम है बाकी सभी तो संक्रमित महापुरुष हैं। वो कब किस धर्म के अनुयायी बन जाए कुछ कहा नहीं जा सकता! विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के हाथों लोभ के वशीभूत होकर अपनी चेतना और आत्मा तो पहले ही बेँच दिया है इन महापुरुषों ने!
और इस के सबसे बड़े जिम्मेदार हमारे तथाकथित धर्म गुरु धर्माचार्य है जिन्होने अपनी इस जिम्मेदारी से मुँह फेर लिया है! धर्माचार्योँ ने सनातन संस्कृति और हिँदूत्व के कल्प वृक्ष को सिंचना आवश्यक नहीं समझा पर ये ढोँगी ये पाखंडी अपना कर्तव्य नित्य इस वृक्ष को क्षति पहुँचाकर अच्छी तरह निभा रहे हैं!
"हिंदू", "इस्लाम", और "क्रिश्चियन"
ये शब्द किस चीज के द्योतक हैं?
क्या ये कोई क्रिकेट टीम के नाम है?
क्या ये किसी राजनैतिक पार्टी का नाम है?
या ये किसी धर्म के नाम है?
फिर इसके अवनति की जिम्मेदारी कौन लेगा?
धर्म के तथाकथित धर्माचार्योँ को लेना होगा
हमारा दुर्भाग्य ये है की आज हमारे देश में सनातन संस्कृति की हिँदूत्व की मूल चिंतन सिर्फ कुछ 0.01 प्रतिशत लोगो तक ही सीमित हो चुकी है और इस अति अल्प प्रतिशत में हमारे तथाकथित धर्माचार्य बिलकुल भी नहीं आते जो हमेशा अपने वर्चस्व की लड़ाई और मोटापा बढ़ाने के प्रतियोगिता में सँलिप्त रहते है इनमे कैसा चिंतन और कैसी जिम्मेदारी!
हाँ तो मैं 0.01 प्रतिशत या इससे भी कम की बात कर रहा था
यदि आज भी हम जागृत नहीं हुए तो मै लिख कर दे दूँ आने वाले कल सनातन और हिँदूत्व जैसे शब्द सिर्फ और सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएँगे!
और इसका जिम्मेदार साधक समाज भी होगा!
-निखिल क्रोध
॥अंतर्वेदना॥
आज एक प्रिय भाई ने ढोँगी और पाखंडी जैसे शब्दों पर प्रश्न किया उसी प्रश्न के संदर्भ में-
वास्तव में ये दोनो शब्द समानार्थी हैं।
ये ढोँगी या पाखंडी शब्द समूह वाचक है और इसकी व्यक्तिवाचक अभिव्यक्ति विभिन्न तथाकथित स्वयंसिद्ध गुरुओँ तथा ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देने वाले नामों से किया जा सकता है!
ऐसा नहीं है ये ज्ञान शुन्य होते हैं वास्तव में इन्हे कुछ डाक्यूमेँटल आर थ्योरेटिकल ज्ञान जरूर होता है पर प्रैक्टीकल ज्ञान से इनकी दूरी उतनी ही होती है जितना की चंद्रमा और चंद्रमुखि में हुआ करती है!
और ये लोग अपने इस किताबी ज्ञान से सर्व प्रथम लोगों को स्वयं तक आकर्षित करते हैं और फिर बाद में अपनी लोकप्रियता को रुपये में तब्दील करते हैं!
यदि एक व्यक्ति चाहे वो अल्पज्ञ हो या सर्वज्ञ सिर्फ अपनी आवश्यक्ता पूर्ति भर धन अपने ज्ञान से कमाता भी है तो ये बिलकुल गलत नहीं है बल्कि उचित ही है!
ताकि ज्ञान संवहन अनवरत सुचारु रूप से जारी रहे और समाज में सनातन संस्कृती अपने पूर्ण गौरव मयी स्वरूप में सुसज्जित रहे!
परंतु जब साधक लोभ के वशीभूत हो जाता है तो अपने अल्पज्ञता से ही अधिकाधिक धन कमाने को आतुर हो उठता है और इसके लिए झूठे सपने दिखाना, रातोरात सिद्ध बनाना, या किसी समस्या को दूर करना, लोगों को विग्रह वादी बनाना, आदि आदि प्रकार से असत्य अधर्म और अन्याय पूर्ण कृत्य करना उसका स्वभाव बन जाता है
वो ये नहीं सोचता की कोई व्यक्ति अपनी कितनी आवश्यक कार्यों को रोक कर उसे धन दे रहा है कभी अपसरा पाने के लालच में कभी इतर योनी के लालच में तो कभी कुछ कभी कुछ
और इसका सबसे बड़ा हानी हमारे धर्म को उठाना पड़ता है लोगों के अविश्वास और उपेक्षा के रूप में
यही स्थिती जब साधक अल्प ज्ञान पाकर अपने ही धर्म के पतन को आतुर हो उठता है को ढोँगी/ पाखंडी/और ठग आदि नामों से जाना जाता है।
उस मूर्ख को ये भी पता नहीं होता की वो उस डाल की जड़ को काट रहा होता है जिस पर की वो स्वयं बैठा हुआ है!
कहने को तो हिंदुस्तान की जन संख्या सवा सौ करोड़ की है और यदि तुम्हे ऐसा लगता है की इसके करीब करीब 90 करोड़ या इससे कुछ कम अधिक संख्या है हिंदूओँ की तो आप गलत है वास्तव में हिंदूओँ की कुल संख्या सिर्फ कुछ लाख तक ही सीमित है जो की बहुत ही ज्यादा कम है बाकी सभी तो संक्रमित महापुरुष हैं। वो कब किस धर्म के अनुयायी बन जाए कुछ कहा नहीं जा सकता! विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के हाथों लोभ के वशीभूत होकर अपनी चेतना और आत्मा तो पहले ही बेँच दिया है इन महापुरुषों ने!
और इस के सबसे बड़े जिम्मेदार हमारे तथाकथित धर्म गुरु धर्माचार्य है जिन्होने अपनी इस जिम्मेदारी से मुँह फेर लिया है! धर्माचार्योँ ने सनातन संस्कृति और हिँदूत्व के कल्प वृक्ष को सिंचना आवश्यक नहीं समझा पर ये ढोँगी ये पाखंडी अपना कर्तव्य नित्य इस वृक्ष को क्षति पहुँचाकर अच्छी तरह निभा रहे हैं!
"हिंदू", "इस्लाम", और "क्रिश्चियन"
ये शब्द किस चीज के द्योतक हैं?
क्या ये कोई क्रिकेट टीम के नाम है?
क्या ये किसी राजनैतिक पार्टी का नाम है?
या ये किसी धर्म के नाम है?
फिर इसके अवनति की जिम्मेदारी कौन लेगा?
धर्म के तथाकथित धर्माचार्योँ को लेना होगा
हमारा दुर्भाग्य ये है की आज हमारे देश में सनातन संस्कृति की हिँदूत्व की मूल चिंतन सिर्फ कुछ 0.01 प्रतिशत लोगो तक ही सीमित हो चुकी है और इस अति अल्प प्रतिशत में हमारे तथाकथित धर्माचार्य बिलकुल भी नहीं आते जो हमेशा अपने वर्चस्व की लड़ाई और मोटापा बढ़ाने के प्रतियोगिता में सँलिप्त रहते है इनमे कैसा चिंतन और कैसी जिम्मेदारी!
हाँ तो मैं 0.01 प्रतिशत या इससे भी कम की बात कर रहा था
यदि आज भी हम जागृत नहीं हुए तो मै लिख कर दे दूँ आने वाले कल सनातन और हिँदूत्व जैसे शब्द सिर्फ और सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएँगे!
और इसका जिम्मेदार साधक समाज भी होगा!
-निखिल क्रोध
॥अंतर्वेदना॥
आज एक प्रिय भाई ने ढोँगी और पाखंडी जैसे शब्दों पर प्रश्न किया उसी प्रश्न के संदर्भ में-
वास्तव में ये दोनो शब्द समानार्थी हैं।
ये ढोँगी या पाखंडी शब्द समूह वाचक है और इसकी व्यक्तिवाचक अभिव्यक्ति विभिन्न तथाकथित स्वयंसिद्ध गुरुओँ तथा ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देने वाले नामों से किया जा सकता है!
ये ढोँगी या पाखंडी शब्द समूह वाचक है और इसकी व्यक्तिवाचक अभिव्यक्ति विभिन्न तथाकथित स्वयंसिद्ध गुरुओँ तथा ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देने वाले नामों से किया जा सकता है!
ऐसा नहीं है ये ज्ञान शुन्य होते हैं वास्तव में इन्हे कुछ डाक्यूमेँटल आर थ्योरेटिकल ज्ञान जरूर होता है पर प्रैक्टीकल ज्ञान से इनकी दूरी उतनी ही होती है जितना की चंद्रमा और चंद्रमुखि में हुआ करती है!
और ये लोग अपने इस किताबी ज्ञान से सर्व प्रथम लोगों को स्वयं तक आकर्षित करते हैं और फिर बाद में अपनी लोकप्रियता को रुपये में तब्दील करते हैं!
यदि एक व्यक्ति चाहे वो अल्पज्ञ हो या सर्वज्ञ सिर्फ अपनी आवश्यक्ता पूर्ति भर धन अपने ज्ञान से कमाता भी है तो ये बिलकुल गलत नहीं है बल्कि उचित ही है!
ताकि ज्ञान संवहन अनवरत सुचारु रूप से जारी रहे और समाज में सनातन संस्कृती अपने पूर्ण गौरव मयी स्वरूप में सुसज्जित रहे!
परंतु जब साधक लोभ के वशीभूत हो जाता है तो अपने अल्पज्ञता से ही अधिकाधिक धन कमाने को आतुर हो उठता है और इसके लिए झूठे सपने दिखाना, रातोरात सिद्ध बनाना, या किसी समस्या को दूर करना, लोगों को विग्रह वादी बनाना, आदि आदि प्रकार से असत्य अधर्म और अन्याय पूर्ण कृत्य करना उसका स्वभाव बन जाता है
वो ये नहीं सोचता की कोई व्यक्ति अपनी कितनी आवश्यक कार्यों को रोक कर उसे धन दे रहा है कभी अपसरा पाने के लालच में कभी इतर योनी के लालच में तो कभी कुछ कभी कुछ
और इसका सबसे बड़ा हानी हमारे धर्म को उठाना पड़ता है लोगों के अविश्वास और उपेक्षा के रूप में
यही स्थिती जब साधक अल्प ज्ञान पाकर अपने ही धर्म के पतन को आतुर हो उठता है को ढोँगी/ पाखंडी/और ठग आदि नामों से जाना जाता है।
उस मूर्ख को ये भी पता नहीं होता की वो उस डाल की जड़ को काट रहा होता है जिस पर की वो स्वयं बैठा हुआ है!
कहने को तो हिंदुस्तान की जन संख्या सवा सौ करोड़ की है और यदि तुम्हे ऐसा लगता है की इसके करीब करीब 90 करोड़ या इससे कुछ कम अधिक संख्या है हिंदूओँ की तो आप गलत है वास्तव में हिंदूओँ की कुल संख्या सिर्फ कुछ लाख तक ही सीमित है जो की बहुत ही ज्यादा कम है बाकी सभी तो संक्रमित महापुरुष हैं। वो कब किस धर्म के अनुयायी बन जाए कुछ कहा नहीं जा सकता! विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के हाथों लोभ के वशीभूत होकर अपनी चेतना और आत्मा तो पहले ही बेँच दिया है इन महापुरुषों ने!
और इस के सबसे बड़े जिम्मेदार हमारे तथाकथित धर्म गुरु धर्माचार्य है जिन्होने अपनी इस जिम्मेदारी से मुँह फेर लिया है! धर्माचार्योँ ने सनातन संस्कृति और हिँदूत्व के कल्प वृक्ष को सिंचना आवश्यक नहीं समझा पर ये ढोँगी ये पाखंडी अपना कर्तव्य नित्य इस वृक्ष को क्षति पहुँचाकर अच्छी तरह निभा रहे हैं!
"हिंदू", "इस्लाम", और "क्रिश्चियन"
ये शब्द किस चीज के द्योतक हैं?
क्या ये कोई क्रिकेट टीम के नाम है?
क्या ये किसी राजनैतिक पार्टी का नाम है?
या ये किसी धर्म के नाम है?
क्या ये किसी राजनैतिक पार्टी का नाम है?
या ये किसी धर्म के नाम है?
फिर इसके अवनति की जिम्मेदारी कौन लेगा?
धर्म के तथाकथित धर्माचार्योँ को लेना होगा
हमारा दुर्भाग्य ये है की आज हमारे देश में सनातन संस्कृति की हिँदूत्व की मूल चिंतन सिर्फ कुछ 0.01 प्रतिशत लोगो तक ही सीमित हो चुकी है और इस अति अल्प प्रतिशत में हमारे तथाकथित धर्माचार्य बिलकुल भी नहीं आते जो हमेशा अपने वर्चस्व की लड़ाई और मोटापा बढ़ाने के प्रतियोगिता में सँलिप्त रहते है इनमे कैसा चिंतन और कैसी जिम्मेदारी!
हाँ तो मैं 0.01 प्रतिशत या इससे भी कम की बात कर रहा था
यदि आज भी हम जागृत नहीं हुए तो मै लिख कर दे दूँ आने वाले कल सनातन और हिँदूत्व जैसे शब्द सिर्फ और सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएँगे!
और इसका जिम्मेदार साधक समाज भी होगा!
कोई जैन है कोई बोद्ध है , यादव है जाट है कोई क्षत्रिय है , हरिजन है , पर हिन्दू नहीं है ये बात कब याद आएगा आप को जाती गात गुरु बन गए
जो खुद कुछ नहीं कर सके पर ज्ञानी बन कर सभी को इसे अज्ञानता के दलदल मैं ले जा कर छोड़ देते है इसे साधक कही के नहीं होते है सब कुच्छ दे कर भी कुछ नहीं पा सके , और वही दुःख वेदना मैं जीवन गवा दिया
क्योंकि हिँदूत्व के परिपोषक अपने दायित्व से भाग रहे हैं इसलिए ये नेता हमें जातिगत स्तर पर बाँटने में सफल हो रहे हैं क्योंकि हममे धर्म की भावना को बल देने वाले हमारे धर्माचार्योँ ने अब नोट गिनना और मोटापा बढ़ाना बस यही दो काम अपने नैतिक कर्तव्य के रूप में अपना लिया है
जो खुद कुछ नहीं कर सके पर ज्ञानी बन कर सभी को इसे अज्ञानता के दलदल मैं ले जा कर छोड़ देते है इसे साधक कही के नहीं होते है सब कुच्छ दे कर भी कुछ नहीं पा सके , और वही दुःख वेदना मैं जीवन गवा दिया
क्योंकि हिँदूत्व के परिपोषक अपने दायित्व से भाग रहे हैं इसलिए ये नेता हमें जातिगत स्तर पर बाँटने में सफल हो रहे हैं क्योंकि हममे धर्म की भावना को बल देने वाले हमारे धर्माचार्योँ ने अब नोट गिनना और मोटापा बढ़ाना बस यही दो काम अपने नैतिक कर्तव्य के रूप में अपना लिया है
सद्गुरु का आवतरण इसलिए होता है की सभी धर्मो की सार बता कर आप को साधना का उच्चताम उचाई पर ले जाते है ये आज का दुर्भाग्य है आप इसे गुरु को समय रहते नहीं पहचान कर पते है , उस इश्वर पर विश्वास नहीं करते है दोस देते है , तो बहुत दुःख की बात है जागरूक बने इसे ध्रामाचार्यो को और पाखंड नहीं करने दे जो जाती गात रूप से बाते करे हम एक माँ और पिता की संतान है पर है हमरे कर्मो के अनुसार जीवन जीने का तरीका अलग हो सकता है पर आप अगर साधना को करेगे तो आप भी उच्च जीवन जिय सकते है
-निखिल क्रोध
1 comment:
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