Which was considered a slap in secular India
एक महिला शाहबानो जो की मध्य प्रदेश की रहने वाली थी तथा पांच बचो की माँ थी । उसके पति ने 1978 में उसे 3 बार तलाक बोल कर उसे तलाक दे दिया । उस समय उसकी उम्र 62 साल थी।उसके पति ने उसे गुजारा भत्ता देने से भी मना कर दिया । इस्लामिक कानून के अनुसार कुछ राशी तलाक के समय दी जाती है वो उसके पति ने उसे दे दिया था शाहबानो अपने पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए मौलवी और वक्फ बोर्ड के पास गयी पर सबने इस्लामिक कानून का हवाला देते हुए उसे गुजारा भत्ता दिलवाने से मन कर दिया । शाहबानो आखिर में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया । कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया पर ये कुछ मुस्लिम विद्वानों को सही नहीं लगा ।कोर्ट दर कोर्ट होते हुए आखिर में 1986 में ये मामला देश के सुप्रीम कोर्ट में पहुचा और सुप्रीम कोर्ट ने भी शाहबानो के पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया ।न्यायालय ने अपराध दंड संहिता की धारा 125 के अंतर्गत निर्णय लिया जो हर किसी पर लागू होता है चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो। ये आदेश कुछ मुस्लिम विद्वानों को सही नहीं लगा । उन्होंने
ने इसे मुस्लिमो के आंतरिक मामलो में हस्तछेप माना । सैयद सहाबुदीन ,ऍम जे अकबर,ओबैदुल्लाह खान आज़मी , जैसे लोगो ने इसका विरोध करना सुरु कर दिया । उन्होंने सरकार को चेतावनी दी की अगर मुस्लिमो के आंतरिक मामलो में हस्तछेप किया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे । कई जगह आन्दोलन भी सुरु हो गये । उस समय कांग्रेस सरकार पूर्ण बहुमत में थी । विपक्ष नाम की कोई चीज ही नहीं थी । राजीव गाँधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलटने के लिए एक कानून पास किया जिसने शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को उलट दिया। क्योंकि सरकार को पूर्ण बहुमत प्राप्त था, उच्चतम न्यायालय के धर्म-निरपेक्ष निर्णय को उलटने वाले, मुस्लिम महिला (तालाक अधिकार सरंक्षण) कानून 1986 आसानी से पास हो गया। इस कानून के अनुसार ........
"हर वह आवेदन जो किसी तालाकशुदा महिला के द्वारा अपराध दंड संहिता 1973 की धारा 125 के अंतर्गत किसी न्यायालय में इस कानून के लागू होते समय विचाराधीन है, अब इस कानून के अंतर्गत निपटाया जायेगा चाहे उपर्युक्त कानून में जो भी लिखा हो"।
.......... यह उन लोगो के मुह पर एक तमाचा था जो भारत को धर्मनिरपेक्ष समझते थे। क्या अगर कोई हिन्दू संघटन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध करता तो क्या सरकार कानून प्रवर्तित कर सकती थी? क्या हिन्दुओ का कोई आंतरिक मामला नहीं होता ? क्या इस देश के सभी नियम कानून पालन करने की जिम्मेवारी सिर्फ हिन्दुओ की है
ने इसे मुस्लिमो के आंतरिक मामलो में हस्तछेप माना । सैयद सहाबुदीन ,ऍम जे अकबर,ओबैदुल्लाह खान आज़मी , जैसे लोगो ने इसका विरोध करना सुरु कर दिया । उन्होंने सरकार को चेतावनी दी की अगर मुस्लिमो के आंतरिक मामलो में हस्तछेप किया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे । कई जगह आन्दोलन भी सुरु हो गये । उस समय कांग्रेस सरकार पूर्ण बहुमत में थी । विपक्ष नाम की कोई चीज ही नहीं थी । राजीव गाँधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलटने के लिए एक कानून पास किया जिसने शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को उलट दिया। क्योंकि सरकार को पूर्ण बहुमत प्राप्त था, उच्चतम न्यायालय के धर्म-निरपेक्ष निर्णय को उलटने वाले, मुस्लिम महिला (तालाक अधिकार सरंक्षण) कानून 1986 आसानी से पास हो गया। इस कानून के अनुसार ........
"हर वह आवेदन जो किसी तालाकशुदा महिला के द्वारा अपराध दंड संहिता 1973 की धारा 125 के अंतर्गत किसी न्यायालय में इस कानून के लागू होते समय विचाराधीन है, अब इस कानून के अंतर्गत निपटाया जायेगा चाहे उपर्युक्त कानून में जो भी लिखा हो"।
.......... यह उन लोगो के मुह पर एक तमाचा था जो भारत को धर्मनिरपेक्ष समझते थे। क्या अगर कोई हिन्दू संघटन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध करता तो क्या सरकार कानून प्रवर्तित कर सकती थी? क्या हिन्दुओ का कोई आंतरिक मामला नहीं होता ? क्या इस देश के सभी नियम कानून पालन करने की जिम्मेवारी सिर्फ हिन्दुओ की है
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