When will all of the plaintiffs, his home in Srinagar, Kashmiri Pandits ....!


आखिर कब लौटेंगे गुलमर्ग की वादियों में अपने घर, कश्मीरी पंडित....!!!

कश्मीर व कश्मीर की समस्याओं के लिए हमारे देश का कथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग निरंतर प्रयास करता रहता हैं। मगर इस प्रकार के बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा कश्मीरी पंडितो के घर वापसी... को लेकर न तो किसी प्रकार की मांग उठाई जाती है, और न हीं कोई संवेदना या प्रतिक्रिया ही सामने आती है। ये एक चिंतनीय विषय है कि कश्मीरी पंडितो के समस्याओं को लेकर इन लोगो का मानवतावादी दृष्टिकोण न जाने कहां चला जाता है। अगर कोई इस प्रकार का प्रयास करता भी है, तो उसे सांप्रदायिकता के रंग मे रंग दिया जाता है।
देश में कश्मीरी पंडितो को अपने घर कश्मीर को छोड़े हुए 21वर्ष बीत गए लेकिन घर वापसी की राह अभी भी अंधकारमय है । लगभग 7 लाख कश्मीरी परिवार भारत के विभिन्न हिस्सों व् रिफ्यूजी कैम्प में शरणार्थियो की तरह जीवन बिताने को मजबूर है। कश्मीरी पंडितों को जिस प्रकार एक व्यापक साजिश के तहत कश्मीर छोड़ने पर विवश होना पड़ा था, ये जग जाहिर है। आतंकी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि जब तक कश्मीरी पंडित कश्मीर में है, तब तक वह अपने इरादो में कामयाब नहीं हो पायेगें। इसलिए सबसे पहले इन्हें निशाना बनाया गया।

90 के दशक में आईसआई नें एक व्यापक साजिश के तहत कश्मीरी पंडितो को कश्मीर से बाहर निकालने का षड्यंत रचा। उनका मानना था कि यदि एक बार यह कश्मीर से पंडित बाहर निकल जायें तो फिर कश्मीर पर कब्जा आसान हो जायेगा। कश्मीरी पंडित घाटी में भारतीय पक्ष के सबसे मजबूत स्तंभ माने जाते थे। शेख अब्दुल्ला ने अपनी आत्मकथा आतिश-ए-चिनार में इन्हें दिल्ली के पांचवें स्तंभकार और जासूस कहकर संबोधित किया था। पंडित समुदाय के प्रमुख सदस्यों का विशेषतौर पर नरसंहार किया गया। आखिरकार अपने जान बचाने के लिए कश्मीरी पंडितों को अपनी जन्म भूमि को छोड़कर शरणार्थियो की तरह जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा। कश्मीर के धरती पर जितना हक बाकि लोगो का है, उतना ही हक इन कश्मीरी पंडितों का भी है।

भारत में कथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग व तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले सेकुलरवादी नेता लोकतंत्र के मंदिर संसद पर हमले के दोषी अफज़ल के माफी की बात तो बड़ी जोर शोर से रखते है, लेकिन कश्मीरी पंडित के घर वापसी के मसले पर इनकी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आती है। राज्य व केन्द्र सरकार यह दावा तो करती है कि कश्मीर अब कश्मीरी पंडितो के लिए खुला है और वह चाहे तो घर वापसी कर सकते है, पर इन दावो में कितनी सच्चाई है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। अगर यह घर वापसी कर भी ले, तो जाये कहां, क्योंकि उनका अधिकतर आशियाना आंतिकयो ने उजाड दिया है। और सबसे बडी समस्या यह है कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेबारी कौन लेगा?

बी.बी.सी हिन्दी में छपे एक लेख के अनुसार जिन नौ परिवारो ने घर वापसी की थी, उनका अनुभव अच्छा नही रहा। उनका कहना है कि कश्मीर के अधिकारी उन्हें वहाँ फिर से बसने में हतोत्साहित करते हैं।.वे अपने गाँवों में फिर से घर बनाना चाहते हैं, लेकिन सरकार बस स्टैंड बनाने के लिए उनसे ज़मीन छीन रही है। इन सब के अनुभव यह दर्शाते है कि कश्मीर में अभी भी कश्मीरी पंडितो के लिए हालात इस लायक नहीं हुए है कि वह अपनी घर वापसी की सोच सके।

इनका दर्द किसी को नज़र नहीं आता, शायद इसलिए इनके पुनर्वसन के लिए ठोस प्रयास नहीं किया जा रहा है। लेकिन इनकी उदारता तो देखिये, अपने ही देश में शरणार्थियो की तरह जीवन व्यतीत करने के बाद भी भारत में इनकी आस्था कंही से कमजोर नहीं हुई है। दूसरी तरफ अलगाववादी हैं जिन्हें सरकार के तरफ से हर सुविधांए प्रदान की जाती है, फिर भी वह भारत को अपना देश नहीं मानते और कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिश रचते रहते हैं। इसके बाद भी वह कश्मीर में शान के साथ रहते है। कश्मीरी पंडितो को नाराजगी सिर्फ सरकार से नहीं है, उनकी आंखे कुछ सवाल हमसे भी पूछती हैं कि क्या हमें भी उनका दर्द नहीं दिखाई देता ? अगर दिखता है तो हम मौन क्यों हैं? इन सवालो का जवाब अपने अन्दर खोजना होगा कि कश्मीरी पंडितो को हमारे सदभावना की नहीं, हमारे प्रयासों की आवश्यकता है ।

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